Wednesday, September 30, 2020

भगवान् नरसिंह Nasimha

भगवान को उग्रवीर भी कहा जाता है, जो भी भगवान् नरसिंह जी की भक्ति पूजा करता है भगवान् स्वयं उन भक्तों की रक्षा करते हैं, उन्हें जीवन में कोई आभाव रह ही नहीं सकता, शत्रु स्वमेव नष्ट हो जाते हैं, रोग शोक पास भी नहीं फटकते, जीवन सुखमय हो जाता है, तो वो शुभ घडी आ गयी है जब आप भगवान नरसिंह को प्रसन्न कर कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं और पूरी कर सकते हैं जीवन की बड़ी से बड़ी इच्छा भगवान् नरसिंह की उपासना सौम्य रूप में करनी चाहिए

भगवान नरसिंह के प्रमुख 10 रूप है 

१) उग्र नरसिंह २) क्रोध नरसिंह ३) मलोल नरसिंह ४) ज्वल नरसिंह ५) वराह नरसिंह ६) भार्गव नरसिंह ७) करन्ज नरसिंह ८) योग नरसिंह ९) लक्ष्मी नरसिंह १०) छत्रावतार नरसिंह/पावन नरसिंह/पमुलेत्रि नरसिंह

दस नामों का उच्चारण करने से कष्टों से मुक्ति और गंभीर रोगों के नाश में लाभ मिलाता है ।


प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए तथा भगवान श्री नृसिंह की विधी विधान के साथ पूजा अर्चना करें.

अपने गुरूदेव, गणेश जी आदि का ध्यान करने के पश्चात श्री नृसिंह भगवान का धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करना चाहिए

भगवान श्री नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए तत्पश्चात वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए. भगवान श्री नरसिंह जी की पूजा के लिए फल, पुष्प, पंचमेवा, कुमकुम केसर, नारियल, अक्षत व पीताम्बर रखें. गंगाजल, काले तिल, पञ्च गव्य, व हवन सामग्री का पूजन में उपयोग करें.

भगवान श्री नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए उनके श्री नरसिंह गायत्री मंत्र का जाप करें.


श्री नृसिंह गायत्री मंत्र

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ॐ उग्रनृृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नोनृसिंह प्रचोदयात् ।


श्री नरसिंह मंत्र

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ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् I


नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम् II


ॐ नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः ।


श्री नरसिंह के अन्य मंत्र

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1)संपत्ति बाधा नाशक मंत्र

यदि आपने किसी भी तरह की संपत्ति खरीदी है गाड़ी, फ्लेट, जमीन या कुछ और उसके कारण आया संकट या बाधा परेशान कर रही है तो संपत्ति का नरसिंह मंत्र जपें

भगवान नरसिंह या विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें

धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें

सात दिये जलाएं

हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें

काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें

मंत्र-ॐ नृम मलोल नरसिंहाय पूरय-पूरय

मंत्र जाप संध्या के समय करने से शीघ्र फल मिलता है


2)ऋण मोचक नरसिंह मंत्र

है यदि आप ऋणों में उलझे हैं और आपका जीवन नरक हो गया है, आप तुरंत इस संकट से मुक्ति चाहते हैं तो ऋणमोचक नरसिंह मंत्र का जाप करें

भगवान नरसिंह की प्रतिमा का पूजन करें

पंचोपचार पूजन कर फल अर्पित करते हुये प्रार्थना करें

मिटटी के पात्र में गंगाजल अर्पित करें

हकीक की माला से छ: माला मंत्र का जाप करें

काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें


मंत्र-ॐ क्रोध नरसिंहाय नृम नम:

रात्रि के समय मंत्र जाप से शीघ्र फल मिलता है


3)शत्रु नाशक नरसिंह मंत्र

यदि आपको कोई ज्ञात या अज्ञात शत्रु परेशान कर रहा हो तो शत्रु नाश का नरसिंह मंत्र जपें

भगवान विष्णु जी की प्रतिमा का पूजन करें

धूप दीप पुष्प सहित जटामांसी अवश्य अर्पित कर प्रार्थना करें

चौमुखे तीन दिये जलाएं

हकीक की माला से पांच माला मंत्र का जाप करें

काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें


मंत्र-ॐ नृम नरसिंहाय शत्रुबल विदीर्नाय नमः

रात्री को मंत्र जाप से जल्द फल मिलता है


4)यश रक्षक मंत्र

यदि कोई आपका अपमान कर रहा है या किसी माध्यम से आपको बदनाम करने की कोशिश कर रहा है तो यश रक्षा का नरसिंह मंत्र जपें

भगवान नरसिंह जी की प्रतिमा का पूजन करें

कुमकुम केसर गुलाबजल और धूप दीप पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करें सात तरह के अनाज दान में दें

हकीक की माला से सात माला मंत्र का जाप करें

काले रंग के आसन पर बैठ कर ही मंत्र जपें

मंत्र-ॐ करन्ज नरसिंहाय यशो रक्ष

संध्या के समय किया गया मंत्र शीघ्र फल देता है


5)नरसिंह बीज मंत्र

यदि आप पूरे विधि विधान से भगवान नरसिंह जी का पूजन नहीं कर सकते तो आपको चलते फिरते मानसिक रूप से लघु मंत्र का जाप करना चाहिए

लघु मंत्र के जाप से भी मनोरथ पूरण होते हैं

मंत्र-ॐ नृम नृम नृम नरसिंहाय नमः ।


भगवान नरसिंह को मोर पंख चढाने से कालसर्प दोष दूर होता है

भगवान नरसिंह को दही अर्पित करने से मुकद्दमों में विजय मिलती है

भगवान नरसिंह को नाग केसर अर्पित करने से धन लाभ मिलता है

भगवान नरसिंह को बर्फीला पानी अर्पित करने से शत्रु पस्त होते हैं

भगवान नरसिंह को मक्की का आटा चढाने से रूठा व्यक्ति मान जाता है

भगवान नरसिंह को लोहे की कील चढाने से बुरे ग्रह टलते हैं

भगवान नरसिंह को चाँदी और मोती चढाने से रुका धन मिलता है

भगवान नरसिंह को भगवा ध्वज चढाने से रुके कार्य में प्रगति होती है

भगवान नरसिंह को चन्दन का लेप देने से रोगमुक्ति होती


नरसिंह कवच

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ॐ नमोनृसिंहाय सर्व दुष्ट विनाशनाय सर्वंजन मोहनाय सर्वराज्यवश्यं कुरु कुरु स्वाहा !


ॐ नमो नृसिंहाय नृसिंहराजाय नरकेशाय नमो नमस्ते !

ॐ नमः कालाय काल द्रष्टाय कराल वदनाय च !!


ॐ उग्राय उग्र वीराय उग्र विकटाय उग्र वज्राय वज्र देहिने रुद्राय रुद्र घोराय भद्राय भद्रकारिणे ॐ ज्रीं ह्रीं नृसिंहाय नमः स्वाहा !!


ॐ नमो नृसिंहाय कपिलाय कपिल जटाय अमोघवाचाय सत्यं सत्यं व्रतं महोग्र प्रचण्ड रुपाय ! ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ॐ ह्रुं ह्रु ह्रु ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रौं फट् स्वाहा !


ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय ममः सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा ! ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा !!


ॐ आं ह्रीं क्षौ क्रौं ह्रुं फट्, ॐ नमो भगवते सुदर्शन नृसिंहाय मम विजय रुपे कार्ये ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यमेनकार्य शीघ्रं साधय साधय एनं सर्व प्रतिबन्धकेभ्यः सर्वतो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा !!


ॐ क्षौं नमो भगवते नृसिंहाय एतद्दोषं प्रचण्ड चक्रेण जहि जहि स्वाहा !! ॐ नमो भगवते महानृसिंहाय कराल वदन दंष्ट्राय मम विघ्नान् पच पच स्वाहा !!


ॐ नमो नृसिंहाय हिरण्यकश्यप वक्षस्थल विदारणाय त्रिभुवन व्यापकाय भूत-प्रेत पिशाच डाकिनी-शाकिनी कालनोन्मूलनाय मम शरीरं स्थन्भोद्भव समस्त दोषान् हन हन, शर शर, चल चल, कम्पय कम्पय, मथ मथ, हुं फट् ठः ठः !!


ॐ नमो भगवते भो भो सुदर्शन नृसिंह ॐ आं ह्रीं क्रौं क्ष्रौं हुं फट् ॐ सहस्त्रार मम अंग वर्तमान अमुक रोगं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ मथ आरोग्यं कुरु कुरु ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रुं ह्रुं फट् मम शत्रु हन हन द्विष द्विष तद पचयं कुरु कुरु मम सर्वार्थं साधय साधय !!


ॐ नमो भगवते नृसिंहाय ॐ क्ष्रौं क्रौं आं ह्रीं क्लीं श्रीं रां स्फ्रें ब्लुं यं रं लं वं षं स्त्रां हुं फट् स्वाहा !!


ॐ नमः भगवते नृसिंहाय नमस्तेजस्तेजसे अविराभिर्भव वज्रनख वज्रदंष्ट्र कर्माशयान् !! रंधय रंधय तमो ग्रस ग्रस ॐ स्वाहा अभयमभयात्मनि भूयिष्ठाः ॐ क्षौम् !!


ॐ नमो भगवते तुभ्य पुरुषाय महात्मने हरिंऽद्भुत सिंहाय ब्रह्मणे परमात्मने !! ॐ उग्रं उग्रं महाविष्णुं सकलाधारं सर्वतोमुखम् !! नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्युं मृत्युं नमाम्यहम्


इति नृसिंह कवच !!


ब्रह्म सावित्री संवादे नृसिंह पुराण अर्न्तगत कवच सम्पूर्णम !!


नृसिंहकवचस्तोत्रम् ||

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नृसिंहकवचं वक्ष्ये प्रह्लादेनोदितं पुरा |

सर्वरक्षकरं पुण्यं सर्वोपद्रवनाशनम् |१||

सर्व सम्पत्करं चैव स्वर्गमोक्षप्रदायकम् |

ध्यात्वा नृसिंहं देवेशं हेमसिंहासनस्थितम् ||२||

विवृतास्यं त्रिनयनं शरदिन्दुसमप्रभम् |

लक्ष्म्यालिङ्गितवामाङ्गम् विभूतिभिरुपाश्रितम् ||३||

चतुर्भुजं कोमलाङ्गं स्वर्णकुण्डलशोभितम् |

सरोजशोभितोरस्कं रत्नकेयूरमुद्रितम् ||४||

तप्त काञ्चनसंकाशं पीतनिर्मलवाससम् |

इन्द्रादिसुरमौलिष्ठः स्फुरन्माणिक्यदीप्तिभिः ||५||

विरजितपदद्वन्द्वम् च शङ्खचक्रादिहेतिभिः |

गरुत्मत्मा च विनयात् स्तूयमानम् मुदान्वितम् ||६||

स्व हृत्कमलसंवासं कृत्वा तु कवचं पठेत् |

नृसिंहो मे शिरः पातु लोकरक्षार्थसम्भवः ||७||

सर्वगेऽपि स्तम्भवासः फलं मे रक्षतु ध्वनिम् |

नृसिंहो मे दृशौ पातु सोमसूर्याग्निलोचनः ||८||

स्मृतं मे पातु नृहरिः मुनिवार्यस्तुतिप्रियः |

नासं मे सिंहनाशस्तु मुखं लक्ष्मीमुखप्रियः ||९||

सर्व विद्याधिपः पातु नृसिंहो रसनं मम |

वक्त्रं पात्विन्दुवदनं सदा प्रह्लादवन्दितः ||१०||

नृसिंहः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ भूभृदनन्तकृत् |

दिव्यास्त्रशोभितभुजः नृसिंहः पातु मे भुजौ ||११||

करौ मे देववरदो नृसिंहः पातु सर्वतः |

हृदयं योगि साध्यश्च निवासं पातु मे हरिः ||१२||

मध्यं पातु हिरण्याक्ष वक्षःकुक्षिविदारणः |

नाभिं मे पातु नृहरिः स्वनाभिब्रह्मसंस्तुतः ||१३||

ब्रह्माण्ड कोटयः कट्यां यस्यासौ पातु मे कटिम् |

गुह्यं मे पातु गुह्यानां मन्त्राणां गुह्यरूपदृक् ||१४||

ऊरू मनोभवः पातु जानुनी नररूपदृक् |

जङ्घे पातु धराभर हर्ता योऽसौ नृकेशरी ||१५||

सुर राज्यप्रदः पातु पादौ मे नृहरीश्वरः |

सहस्रशीर्षापुरुषः पातु मे सर्वशस्तनुम् ||१६||

महोग्रः पूर्वतः पातु महावीराग्रजोऽग्नितः |

महाविष्णुर्दक्षिणे तु महाज्वलस्तु नैरृतः ||१७||

पश्चिमे पातु सर्वेशो दिशि मे सर्वतोमुखः |

नृसिंहः पातु वायव्यां सौम्यां भूषणविग्रहः ||१८||

ईशान्यां पातु भद्रो मे सर्वमङ्गलदायकः |

संसारभयतः पातु मृत्योर्मृत्युर्नृकेशई ||१९||

इदं नृसिंहकवचं प्रह्लादमुखमण्डितम् |

भक्तिमान् यः पठेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते ||२०||

पुत्रवान् धनवान् लोके दीर्घायुरुपजायते |

कामयते यं यं कामं तं तं प्राप्नोत्यसंशयम् ||२१||

सर्वत्र जयमाप्नोति सर्वत्र विजयी भवेत् |

भूम्यन्तरीक्षदिव्यानां ग्रहाणां विनिवारणम् ||२२||

वृश्चिकोरगसम्भूत विषापहरणं परम् |

ब्रह्मराक्षसयक्षाणां दूरोत्सारणकारणम् ||२३||

भुजेवा तलपात्रे वा कवचं लिखितं शुभम् |

करमूले धृतं येन सिध्येयुः कर्मसिद्धयः ||२४||

देवासुर मनुष्येषु स्वं स्वमेव जयं लभेत् |

एकसन्ध्यं त्रिसन्ध्यं वा यः पठेन्नियतो नरः ||२५||

सर्व मङ्गलमाङ्गल्यं भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति |

द्वात्रिंशतिसहस्राणि पठेत् शुद्धात्मनां नृणाम् ||२६||

कवचस्यास्य मन्त्रस्य मन्त्रसिद्धिः प्रजायते |

अनेन मन्त्रराजेन कृत्वा भस्माभिर्मन्त्रानाम् ||२७||

तिलकं विन्यसेद्यस्तु तस्य ग्रहभयं हरेत् |

त्रिवारं जपमानस्तु दत्तं वार्याभिमन्त्र्य च ||२८||

प्रसयेद् यो नरो मन्त्रं नृसिंहध्यानमाचरेत् |

तस्य रोगः प्रणश्यन्ति ये च स्युः कुक्षिसम्भवाः ||२९||

गर्जन्तं गार्जयन्तं निजभुजपतलं स्फोटयन्तं हतन्तं

रूप्यन्तं तापयन्तं दिवि भुवि दितिजं क्षेपयन्तं क्षिपन्तम् |

क्रन्दन्तं रोषयन्तं दिशि दिशि सततं संहरन्तं भरन्तं

वीक्षन्तं पूर्णयन्तं करनिकरशतैर्दिव्यसिंहं नमामि ||३०||

||इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे प्रह्लादोक्तं श्रीनृसिंहकवचं सम्पूर्णम्


लक्ष्मी-नृसिंह मंत्र व पूजा विधि -

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- सुबह स्नान के बाद देवालय में भगवान नृसिंह व मां लक्ष्मी की प्रतिमा को गंगा जल से स्नान कराकर सुंदर वस्त्र व गहने पहनाएं।

- भगवान नृसिंह को केसर चन्दन, पीले सुगंधित फूल, पीताम्बरी रेशमी वस्त्र, इत्र, यज्ञोपवीत अर्पित करें। इसी तरह माता लक्ष्मी को लाल पूजा सामग्रियां चढ़ावें। नैवेद्य, धूप व दीप लगाकर नीचे लिखे लक्ष्मी-नृसिंह मंत्र का आसन पर बैठकर कम से कम 108 बार सुख-शांति, समृद्धि की कामना से स्मरण करें -


मंत्र:-ॐ श्री लक्ष्मीनृसिंहाय नम:।


- इस मंत्र जप के बाद लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्र का पाठ कर भगवान नृसिंह व मां लक्ष्मी की आरती कर उनको स्नान कराया जल चरणामृत के रूप में ग्रहण करें।


लक्ष्मी नृसिंह स्तोत्रम्‌

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श्रीमत्पयोनिधिनिकेतन चक्रपाणे

भोगीन्द्रभोगमणिरंजितपुण्यमूर्ते।

योगीश शाश्वतशरण्यभवाब्धिपोत-लक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम॥1॥



ब्रम्हेन्द्र-रुद्र-मरुदर्क-किरीट-कोटि-

संघट्टितांघ्रि-कमलामलकान्तिकान्त।

लक्ष्मीलसत्कुचसरोरुहराजहंस

लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्‌॥2॥


संसारघोरगहने चरतो मुरारे मारोग्र-

भीकर-मृगप्रवरार्दितस्य।

आर्तस्य मत्सर-निदाघ-निपीडितस्यलक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्‌॥3॥



संसारकूप-मतिघोरमगाधमूलं

सम्प्राप्य दुःखशत-सर्पसमाकुलस्य।

दीनस्य देव कृपणापदमागतस्य

लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्‌॥4॥



संसार-सागर विशाल-करालकाल-

नक्रग्रहग्रसन-निग्रह-विग्रहस्य।

व्यग्रस्य रागदसनोर्मिनिपीडितस्य

लक्ष्मीनृसिंह मम देहिकरावलम्बम्‌॥5॥



संसारवृक्ष-भवबीजमनन्तकर्म-

शाखाशतं करणपत्रमनंगपुष्पम्‌।

आरुह्य दुःखफलित पततो दयालो

लक्ष्मीनृसिंहम देहिकरावलम्बम्‌॥6॥



संसारसर्पघनवक्त्र-भयोग्रतीव्र-

दंष्ट्राकरालविषदग्ध-विनष्टमूर्ते।

नागारिवाहन-सुधाब्धिनिवास-शौरे लक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्‌॥7॥



संसारदावदहनातुर-भीकरोरु-

ज्वालावलीभिरतिदग्धतनुरुहस्य।

त्वत्पादपद्म-सरसीशरणागतस्य

लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलम्बम्‌॥8॥



संसारजालपतितस्य जगन्निवास

सर्वेन्द्रियार्थ-बडिशार्थझषोपमस्य।

प्रत्खण्डित-प्रचुरतालुक-मस्तकस्य

लक्ष्मीनृसिंह मम देहिकरावलम्बम्‌॥9॥



सारभी-करकरीन्द्रकलाभिघात-

निष्पिष्टमर्मवपुषः सकलार्तिनाश।

प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्य-

लक्ष्मीनृसिंहमम देहि करावलम्बम्‌॥10॥



अन्धस्य मे हृतविवेकमहाधनस्य चौरेः

प्रभो बलि भिरिन्द्रियनामधेयै।

मोहान्धकूपकुहरे विनिपातितस्य लक्ष्मीनृसिंहममदेहिकरावलम्बम्‌॥11॥


लक्ष्मीपते कमलनाथ सुरेश विष्णो

वैकुण्ठ कृष्ण मधुसूदन पुष्कराक्ष।

ब्रह्मण्य केशव जनार्दन वासुदेव

देवेश देहि कृपणस्य करावलम्बम्‌॥12॥



यन्माययोर्जितवपुःप्रचुरप्रवाह-

मग्नाथमत्र निबहोरुकरावलम्बम्‌।

लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुवतेत

स्तोत्र कृतं सुखकरं भुवि शंकरेण॥13॥


॥ इति श्रीमच्छंकराचार्याकृतं लक्ष्मीनृसिंहस्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥


नृसिंह सरस्वती अष्टक

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इन्दु कोटी तेज करूणासिंधु भक्त वत्सलम

नंदनात्रिसुनूदत्त मिन्दिराक्ष श्रीगुरूम |

गंध माल्य अक्षतादि वृंददेव वंदितम

वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम ||१||

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माया पाश अंधकार छायादूर भास्करम

आयताक्ष पाहि श्रियावल्लभेशनायकम |

सेव्य भक्त-वृंद वरद भूयो भूयो नमाम्यहम

वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम||२||

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कामादि शन्मत्ता गजां कुसम त्वाम

चित्त जादि वर्ग षटक मत्त वारणांकुशम |

तत्व सार शोभित आत्म दत्त श्रिया वल्लभम

वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम ||३||

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व्योम तेज वायू आप भूमी कर्तुम इश्वरम

काम क्रोध मोह रहित सोम सूर्य लोचनम |

कामितार्थ दातृभक्त कामधेनू श्रीगुरुम

वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम ||४||

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पुन्डरीक आयताक्ष कुंद लेंदु तेजसम

चंड दुरित खंडनार्थ दंडधारि श्रीगुरुम |

मण्डलीक मौली मार्तंडभासिताननम

वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम||५||

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वेद शास्त्र स्तुत्य पाद आदि मूर्ती श्रीगुरुम

नाद बिंदू कलातीत-कल्पपाद सेव्ययम|

सेव्य भक्त वृंद वरद भूयो भूयो नमाम्यहम

वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम||६||

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अष्ट योग तत्व निष्ठ तुष्ट ज्ञान वारिधीम

कृष्णा वेणी तीर वास पंचनदी सेवनम|

कष्ट दैन्य दूरी भक्त तुष्ट काम्य दायकम

वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम||७||

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नारसिंह सरस्वती नाम अष्ट मौक्तीकम

हारकृत शारदेन गंगाधर आत्मजम|

धारणीक देव दीक्ष गुरुमूर्ती तोषितम

वंदयामि नारसिंह सरस्वतीश पाहि माम||८||

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परमात्मा नंद श्रिया पुत्र पौत्र दायकम,

नारसिंह सरस्वतीय अष्टकं च यः पठेत

घोर संसारसिंधू तारणाख्य साधनम,

सारज्ञानदीर्घाअयुरारोग्यादिसंपदम,

चारु वर्ग काम्य लाभ वारंवार यज्जपेत|

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इति श्री गुरुचरित्रांतर्गत श्री नरसिंहसरस्वती अष्टक संपूर्णम|


श्री अथर्वण वेदोक्त नृसिंहमालामन्त्रः

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श्री गणेशाय नमः |


अस्य श्री नृसिंहमाला मन्त्रस्य नारदभगवान् ऋषिः | अनुष्टुभ् छन्दः | श्री नृसिंहोदेवता | आं बीजम् | लं शवित्तः | मेरुकीलकम् | श्रीनृसिंहप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः |


ॐ नमो नृसिंहाय ज्वलामुखग्निनेत्रय शङ्खचक्रगदाप्र्हस्ताय | योगरूपाय हिरण्यकशिपुच्छेदनान्त्रमालाविभुषणाय हन हन दह दह वच वच रक्ष वो नृसिंहाय पुर्वदिषां बन्ध बन्ध रौद्रभसिंहाय दक्षिणदिशां बन्ध बन्ध पावननृसिंहाय पश्चिमदिशां बन्ध बन्ध दारुणनृसिंहाय

उत्तरदिशां बन्ध बन्ध ज्वालानृसिंहाय आकाशदिशां बन्ध बन्ध लक्ष्मीनृसिंहाय पातालदिशां  बन्ध बन्ध कः कः कंपय कंपय आवेशय आवेशय अवतारय अवतारय शीघ्रं शीघ्रं | ॐ नमो नारसिंहाय नवकोटिदेवग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय अष्टकोटिगन्धर्व ग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय षट्कोटिशाकिनीग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय पंचकोटि पन्नगग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय चतुष्कोटि ब्रह्मराक्षसग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय द्विकोटिदनुजग्रहोच्चाटनाय | ॐ नमो नारसिंहाय कोटिग्रहोच्चाटनाय| ॐ नमो नारसिंहाय अरिमूरीचोरराक्षसजितिः वारं वारं | श्रीभय चोरभय व्याधिभय सकल भयकण्टकान् विध्वंसय विध्वंसय | शरणागत वज्रपंजराय विश्वहृदयाय प्रल्हादवरदाय क्षरौं श्रीं नृसिंहाय स्वाहा | ॐ नमो नारसिंहाय मुद्गल शङ्खचक्र गदापद्महस्ताय नीलप्रभांगवर्णाय भीमाय भीषणाय ज्वाला करालभयभाषित श्री नृसिंहहिरण्यकश्यपवक्षस्थलविदार्णाय | जय जय एहि एहि भगवन् भवन गरुडध्वज गरुडध्वज मम सर्वोपद्रवं वज्रदेहेन चूर्णय चूर्णय आपत्समुद्रं शोषय शोषय | असुरगन्धर्वयक्षब्रह्मराक्षस भूतप्रेत पिशाचदिन विध्वन्सय् विध्वन्सय् | पूर्वाखिलं मूलय मूलय | प्रतिच्छां स्तम्भय परमन्त्रपयन्त्र परतन्त्र परकष्टं छिन्धि छिन्धि भिन्धि हं फट् स्वाहा | इति श्री अथर्वण वेदोवत्तनृसिंहमालामन्त्रः समाप्तः | श्री नृसिम्हार्पणमस्तु ||


॥श्रीनृसिंहाष्टोत्तरशतनाम।।


ॐ श्रीनृसिंहाय नमः ।

ॐ महासिंहाय नमः ।

ॐ दिव्यसिंहाय नमः ।

ॐ महाबलाय नमः ।

ॐ उग्रसिंहाय नमः ।

ॐ महादेवाय नमः ।

ॐ उपेन्द्राय नमः ।

ॐ अग्निलोचनाय नमः ।

ॐ रौद्राय नमः ।

ॐ शौरये नमः । १०।

ॐ महावीराय नमः ।

ॐ सुविक्रमपराक्रमाय नमः ।

ॐ हरिकोलाहलाय नमः ।

ॐ चक्रिणे नमः ।

ॐ विजयाय नमः ।

ॐ अजयाय नमः ।

ॐ अव्ययाय नमः ।

ॐ दैत्यान्तकाय नमः ।

ॐ परब्रह्मणे नमः ।

ॐ अघोराय नमः । २०।

ॐ घोरविक्रमाय नमः ।

ॐ ज्वालामुखाय नमः ।

ॐ ज्वालमालिने नमः ।

ॐ महाज्वालाय नमः ।

ॐ महाप्रभवे नमः ।

ॐ निटिलाक्षाय नमः ।

ॐ सहस्राक्षाय नमः ।

ॐ दुर्निरीक्ष्याय नमः ।

ॐ प्रतापनाय नमः ।

ॐ महादंष्ट्राय नमः । ३०।

ॐ प्राज्ञाय नमः ।

ॐ हिरण्यक निषूदनाय नमः ।

ॐ चण्डकोपिने नमः ।

ॐ सुरारिघ्नाय नमः ।

ॐ सदार्तिघ्नाय नमः ।

ॐ सदाशिवाय नमः ।

ॐ गुणभद्राय नमः ।

ॐ महाभद्राय नमः ।

ॐ बलभद्राय नमः ।

ॐ सुभद्रकाय नमः । ४०।

ॐ करालाय नमः ।

ॐ विकरालाय नमः ।

ॐ गतायुषे नमः ।

ॐ सर्वकर्तृकाय नमः ।

ॐ भैरवाडम्बराय नमः ।

ॐ दिव्याय नमः ।

ॐ अगम्याय नमः ।

ॐ सर्वशत्रुजिते नमः ।

ॐ अमोघास्त्राय नमः ।

ॐ शस्त्रधराय नमः । ५०।

ॐ सव्यजूटाय नमः ।

ॐ सुरेश्वराय नमः ।

ॐ सहस्रबाहवे नमः ।

ॐ वज्रनखाय नमः ।

ॐ सर्वसिद्धये नमः ।

ॐ जनार्दनाय नमः ।

ॐ अनन्ताय नमः ।

ॐ भगवते नमः ।

ॐ स्थूलाय नमः ।

ॐ अगम्याय नमः । ६०।

ॐ परावराय नमः ।

ॐ सर्वमन्त्रैकरूपाय नमः ।

ॐ सर्वयन्त्रविदारणाय नमः ।

ॐ अव्ययाय नमः ।

ॐ परमानन्दाय नमः ।

ॐ कालजिते नमः ।

ॐ खगवाहनाय नमः ।

ॐ भक्तातिवत्सलाय नमः ।

ॐ अव्यक्ताय नमः ।

ॐ सुव्यक्ताय नमः । ७०।

ॐ सुलभाय नमः ।

ॐ शुचये नमः ।

ॐ लोकैकनायकाय नमः ।

ॐ सर्वाय नमः ।

ॐ शरणागतवत्सलाय नमः ।

ॐ धीराय नमः ।

ॐ धराय नमः ।

ॐ सर्वज्ञाय नमः ।

ॐ भीमाय नमः ।

ॐ भीमपराक्रमाय नमः । ८०।

ॐ देवप्रियाय नमः ।

ॐ नुताय नमः ।

ॐ पूज्याय नमः ।

ॐ भवहृते नमः ।

ॐ परमेश्वराय नमः ।

ॐ श्रीवत्सवक्षसे नमः ।

ॐ श्रीवासाय नमः ।

ॐ विभवे नमः ।

ॐ सङ्कर्षणाय नमः ।

ॐ प्रभवे नमः । ९०।

ॐ त्रिविक्रमाय नमः ।

ॐ त्रिलोकात्मने नमः ।

ॐ कालाय नमः ।

ॐ सर्वेश्वराय नमः ।

ॐ विश्वम्भराय नमः । ९५

ॐ स्थिराभाय नमः ।

ॐ अच्युताय नमः ।

ॐ पुरुषोत्तमाय नमः ।

ॐ अधोक्षजाय नमः ।

ॐ अक्षयाय नमः । १००।

ॐ सेव्याय नमः ।

ॐ वनमालिने नमः ।

ॐ प्रकम्पनाय नमः ।

ॐ गुरवे नमः ।

ॐ लोकगुरवेनमः । १०५।

ॐ स्रष्ट्रे नमः ।

ॐ परस्मैज्योतिषे नमः ।

ॐ परायणाय नमः ।


॥ श्री नृसिंहाष्टोत्तरशतनामावलिः संपूर्णा ॥


ब्रह्म सावित्री संवादे नृसिंह पुराण अर्न्तगत कवच श्री नृसिंह कवच || Shree Narasimha Kavach || Narsingh Kavach

श्री नृसिंह कवच || Shree Narasimha Kavacham || Narsingh Kavach


ब्रह्म सावित्री संवादे नृसिंह पुराण अर्न्तगत कवच श्री नृसिंह कवच |

विनयोग-

ॐ अस्य श्रीलक्ष्मीनृसिंह कवच महामंत्रस्य

ब्रह्माऋिषः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीनृसिंहोदेवता, ॐ

क्षौ बीजम्, ॐ रौं शक्तिः, ॐ ऐं क्लीं कीलकम्

मम सर्वरोग, शत्रु, चौर, पन्नग, व्याघ्र, वृश्चिक, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, यन्त्र मंत्रादि, सर्व विघ्न निवाराणार्थे श्री नृसिहं कवच महामंत्र जपे विनयोगः।।


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अथ ऋष्यादिन्यास –

ॐ ब्रह्माऋषये नमः शिरसि।

ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमो मुखे।

ॐ श्रीलक्ष्मी नृसिंह देवताये नमो हृदये।

ॐ क्षौं बीजाय नमोनाभ्याम्।

ॐ शक्तये नमः कटिदेशे।

ॐ ऐं क्लीं कीलकाय नमः पादयोः।

ॐ श्रीनृसिंह कवचमहामंत्र जपे विनयोगाय नमः सर्वाङ्गे॥


अथ करन्यास –

ॐ क्षौं अगुष्ठाभ्यां नमः।

ॐ प्रौं तर्जनीभ्यां नमः।

ॐ ह्रौं मध्यमाभयां नमः।

ॐ रौं अनामिकाभ्यां नमः।

ॐ ब्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। 

ॐ जौं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।


अथ हृदयादिन्यास –

ॐ क्षौ हृदयाय नमः।

ॐ प्रौं शिरसे स्वाहा।

ॐ ह्रौं शिखायै वषट्।

ॐ रौं कवचाय हुम्।

ॐ ब्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।

ॐ जौं अस्त्राय फट्।


नृसिंह ध्यान –

ॐ सत्यं ज्ञान सुखस्वरूप ममलं क्षीराब्धि मध्ये स्थित्।

योगारूढमति प्रसन्नवदनं भूषा सहस्रोज्वलम्।

तीक्ष्णं चक्र पीनाक शायकवरान् विभ्राणमर्कच्छवि।

छत्रि भूतफणिन्द्रमिन्दुधवलं लक्ष्मी नृसिंह भजे॥


कवच पाठ – 

ॐ नमोनृसिंहाय सर्व दुष्ट विनाशनाय सर्वंजन मोहनाय सर्वराज्यवश्यं कुरु कुरु स्वाहा।

ॐ नमो नृसिंहाय नृसिंहराजाय नरकेशाय नमो नमस्ते। ॐ नमः कालाय काल द्रष्ट्राय कराल वदनाय च।


ॐ उग्राय उग्र वीराय उग्र विकटाय उग्र वज्राय वज्र देहिने रुद्राय रुद्र घोराय भद्राय भद्रकारिणे ॐ ज्रीं ह्रीं नृसिंहाय नमः स्वाहा !!


ॐ नमो नृसिंहाय कपिलाय कपिल जटाय अमोघवाचाय सत्यं सत्यं व्रतं महोग्र प्रचण्ड रुपाय। ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ॐ ह्रुं ह्रुं ह्रुं ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रौं फट् स्वाहा।


ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय ममः सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा। ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा।


ॐ आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं ह्रुं फट्। ॐ नमो भगवते सुदर्शन नृसिंहाय मम विजय रुपे कार्ये ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यमेनकार्य शीघ्रं साधय साधय एनं सर्व प्रतिबन्धकेभ्यः सर्वतो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा।


ॐ क्षौं नमो भगवते नृसिंहाय एतद्दोषं प्रचण्ड चक्रेण जहि जहि स्वाहा। ॐ नमो भगवते महानृसिंहाय कराल वदन दंष्ट्राय मम विघ्नान् पच पच स्वाहा।


ॐ नमो नृसिंहाय हिरण्यकश्यप वक्षस्थल विदारणाय त्रिभुवन व्यापकाय भूत-प्रेत पिशाच डाकिनी-शाकिनी कालनोन्मूलनाय मम शरीरं स्तम्भोद्भव समस्त दोषान् हन हन, शर शर, चल चल, कम्पय कम्पय, मथ मथ, हुं फट् ठः ठः।


ॐ नमो भगवते भो भो सुदर्शन नृसिंह ॐ आं ह्रीं क्रौं क्ष्रौं हुं फट्। ॐ सहस्त्रार मम अंग वर्तमान ममुक रोगं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ मथ आरोग्यं कुरु कुरु ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रुं ह्रुं फट् मम शत्रु हन हन द्विष द्विष तद पचयं कुरु कुरु मम सर्वार्थं साधय साधय।


ॐ नमो भगवते नृसिंहाय ॐ क्ष्रौं क्रौं आं ह्रीं क्लीं श्रीं रां स्फ्रें ब्लुं यं रं लं वं षं स्त्रां हुं फट् स्वाहा।


ॐ नमः भगवते नृसिंहाय नमस्तेजस्तेजसे अविराभिर्भव वज्रनख वज्रदंष्ट्र कर्माशयान्  रंधय रंधय तमो ग्रस ग्रस ॐ स्वाहा अभयमभयात्मनि भूयिष्ठाः ॐ क्षौम्।


ॐ नमो भगवते तुभ्य पुरुषाय महात्मने हरिंऽद्भुत सिंहाय ब्रह्मणे परमात्मने।

ॐ उग्रं उग्रं महाविष्णुं सकलाधारं सर्वतोमुखम्।

नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्युं मृत्युं नमाम्यहम्।


!! इति नृसिंह कवच !! ब्रह्म सावित्री संवादे नृसिंह पुराण अर्न्तगत कवच सम्पूर्णम !!


II श्री लक्ष्मीनृसिंह आत्मरक्षा माला मंत्र ll

The very following mantra is very powerful self protection mantra of srI narasimhA . Whenever one feels unsafe / unprotected or feels something fishy one should recite this mantra . Best will be if one perform 1000 japaM of this mantra at some narsimha temple or any vaishnava temple and   perform homam with mustard oil ,instead of ghee 100 times.

The peculiarity of mantra is pratyangira and Narasimhi are also involved with narsimha for self protection .


This mantra is also known as “nArasimhI-pratyangirA sametha-narshimha rakshA mantra ” .

Recitation of this mantra removes ghosts , evil energies, enemies ,para-mantra-yantra-tantra prayogas and many more . Every kind of dark energy can be replaced by god energy by recitation of this mantra . ” Better will be try and experience ”


ॐ नमो भगवते महानृसिंहाय सिंहाय सिंहमुखाय विकटाय वज्रन्तनखाय मां रक्ष रक्ष ममशरीरं नखशिखापर्यन्तं रक्ष रक्ष कुरु कुरु मदीयं शरीरं वज्राङगम् कुरु कुरु परयन्त्रपरमन्त्रपरतन्त्राणां क्षिणुक्षिणुखड्‍गादिधनुर्बाणाग्निबाण भुशुण्डि आदि शस्त्राणां इंद्रवज्रादि ब्रह्मस्त्राणां स्तम्भय स्तम्भय जलाग्निमध्ये रक्ष गृहमध्ये ग्राममध्ये नगरमध्ये वनमध्ये रनमध्ये स्मशानमध्ये रक्ष रक्ष राजद्वारे राजसभामध्ये रक्ष रक्ष कुरु

कुरुभूतप्रेतपिशाच देवदानवयक्षकिन्नरराक्षसब्रह्मराक्षसडाकिनीशाकिनीमौंजियादि अविधं प्रेतानां भस्मं कुरु कुरु

भोः प्रत्यंगिरीसिंहीसिंहमुखीज्वलज्वला जिव्हे करालवदने मां रक्ष रक्ष मम शरीरं वज्रमयं कुरु कुरु दशादिशां बन्ध बन्ध वज्रकोटं कुरु कुरु आत्मचक्रं भ्रमावर्तं सर्वत्रं रक्ष रक्ष सर्वभयं नाशय नाशय  व्याघ्रसर्पवराहचोरादीन् बन्धय बन्धय पिशाचश्वानदूतान् कीलय कीलय हुं हुं हुं फट् ॥


Thursday, September 17, 2020

Sri Narasimha Stambha Avirbhava Stotram – श्री नृसिंह स्तम्भाविर्भाव स्तोत्रम्

 


Sri Narasimha Stambha Avirbhava Stotram – श्री नृसिंह स्तम्भाविर्भाव स्तोत्रम्






सहस्र भास्कर स्फुरत्प्रभाक्ष दुर्निरीक्षणं
प्रभग्नकॄर कृद्धिरण्य कश्यपोरु रस्थलम् ।
अजस्तृ जाण्डकर्प रप्रभग्न रौद्रगर्जनं
उदग्र निग्रहाग्र होग्र विग्रहाकृतिं भजे ॥ १ ॥

स्वयम्भु शम्भु जम्भजित्प्रमुख्य दिव्यसम्भ्रमं
द्विजृम्भ मध्य दुत्कटोग्र दैत्यकुम्भ कुम्भिनिन् ।
अनर्गलाट्‍टहास निस्पृहाष्ट दिग्गजार्भटिन्
युगान्ति मान्तमत्कृतान्त धिक्कृतान्तकं भजे ॥ २ ॥

जगज्वलद्द हद्ग्रसत्प्रहस्फुरन्मुखार्भटिं
महद्भ यद्भ वद्द हग्र सल्ल सत्कृताकृतिम् ।
हिरण्यकश्यपो सहस्र संहरत्समर्थ कृन्मु हुर्मु हुर्मु हुर्ग लध्वनन्नृसिंह रक्ष माम् ॥ ३ ॥

दरिद्रदेवि दुष्टि दृष्टि दुःख दुर्भरं हरं
नवग्रहोग्र वक्र दोषणादि व्याधि निग्रहम् ।
परौषधादि मन्त्र यन्त्र तन्त्र कृत्रि मंहनं
अकाल मृत्यु मृत्यु मृत्यु मुग्र मूर्तिणं भजे ॥ ४ ॥

जयत्व वक्र विक्रम क्रम क्रम क्रियाहरं
स्फुरत्सहस्र विस्फुलिङ्ग भास्कर प्रभाग्रसत् ।
धगद्धगद्ध गल्लसन्महद् भ्रमत्सुदर्शनो-
न्मदेभ भित्स्वरूप भृद्भब वत्कृपार सामृतम् ॥ ५ ॥

विपक्ष पक्ष राक्षसाक्ष माक्ष रूक्ष वीक्षणं
सदाऽक्षयत्कृपा कटाक्ष लक्ष्म लक्ष्मि वक्षसम् ।
विचक्षणं विलक्षणं प्रतीक्षणं परीक्षणं
परीक्ष दीक्ष रक्ष शिक्ष साक्षिणं क्षमं भजे ॥ ६ ॥

अपूर्व शौर्य धैर्य वीर्य दुर्निवार्य दुर्गमं
अकार्यकृद्धनार्य गर्वपर्वतप्रहार्यसत् ।
प्रचार्य सर्वनिर्व हस्तु पर्यवर्य पर्विणं
सदार्य कार्य भार्य भृद्दु दार वर्यणं भजे ॥ ७ ॥

प्रपत्ति नार्द्र नाभ नाभि वन्दन प्रदक्षिणा
नतान नाङ्गवाङ्मनःस्मरज्ज पस्तुवद्गदा ।
अश्रुपूरणार्द्रपूर्ण भक्ति पारवश्यता
सकृत्क्रिया चरद्ध वत्कृपा नृसिंह रक्ष माम् ॥ ८ ॥

कराल वक्त्र कर्क शोग्र वज्र दम्ष्ट्र मुज्ज्वलं
कुठार खड्ग कुन्त रोम राङ् कुशो न्नखायुधम् ।
मह द्भ्रयूध भग्न सञ्चलज्ञता सटालकं
जगत्प्रमूर्छिताट्‍टहास चक्रवर्तिणं भजे ॥ ९ ॥

नवग्रहाऽप मृत्यु गण्ड वास्तुरोग वृश्चिका-
-ऽग्नि बाडबाग्नि काननाग्नि शतृमण्डल ।
प्रवाह क्षुत्पिपास दुःख तस्कर प्रयोग दुष्प्रमाद सङ्कटात्सदा नृसिंह रक्ष मां प्रभो ॥ १० ॥

उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम् ।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्योर्मृत्युर्नमाम्यहम् ॥


ॐ नमो नृसिंह देवाय ॥

श्री षोडश बाहु नृसिंह अष्टकम || Sri Shodasha Bahu Narasimha Ashtakam

  श्री षोडश बाहु नृसिंह अष्टकम || Sri Shodasha Bahu Narasimha Ashtakam

श्री षोडश बाहु नृसिंह अष्टकम श्रीविजयीन्द्रयति कृतं द्वारा रचियत हैं ! 



श्री षोडश बाहु नृसिंह अष्टकम || Sri Shodasha Bahu Narasimha Ashtakam


॥ श्रीषोडशबाहुनृसिंहाष्टकम् ॥

भूखण्डं वारणाण्डं परवरविरटं डंपडंपोरुडंपं,

डिं डिं डिं डिं डिडिम्बं दहमपि दहमैः झम्पझम्पैश्चझम्पैः ।


तुल्यास्तुल्यास्तु तुल्याः धुमधुमधुमकैः कुङ्कुमाङ्कैः कुमाङ्कैः, एतत्ते पूर्णयुक्तमहरहकरहः पातु मां नारसिंहः ॥ १॥


भूभृद्भूभृद्भुजङ्गं प्रलयरववरं प्रज्वलद्ज्वालमालं, खर्जर्जं खर्जदुर्जं खिखचखचखचित्खर्जदुर्जर्जयन्तं ।


भूभागं भोगभागं गगगगगगनं गर्दमर्त्युग्रगण्डं,


स्वच्छं पुच्छं स्वगच्छं स्वजनजननुतः पातु मां नारसिंहः ॥ २॥


एनाभ्रं गर्जमानं लघुलघुमकरो बालचन्द्रार्कदंष्ट्रो,


हेमाम्भोजं सरोजं जटजटजटिलो जाड्यमानस्तुभीतिः ।


दन्तानां बाधमानां खगटखगटवो भोजजानुस्सुरेन्द्रो, निष्प्रत्यूहं सराजा गहगहगहतः पातु मां नारसिंहः ॥ ३॥


शङ्खं चक्रं च चापं परशुमशमिषुं शूलपाशाङ्कुशास्त्रं, बिभ्रन्तं वज्रखेटं हलमुसलगदाकुन्तमत्युग्रदंष्ट्रं ।


ज्वालाकेशं त्रिनेत्रं ज्वलदनलनिभं हारकेयूरभूषं,

वन्दे प्रत्येकरूपं परपदनिवसः पातु मां नारसिंहः ॥ ४॥


पादद्वन्द्वं धरित्रीकटिविपुलतरो मेरुमध्यूढ्वमूरुं,

नाभिं ब्रह्माण्डसिन्धुः हृदयमपि भवो भूतविद्वत्समेतः ।


दुश्चक्राङ्कं स्वबाहुं कुलिशनखमुखं चन्द्रसूर्याग्निनेत्रं, वक्त्रं वह्निस्सुविद्युत्सुरगणविजयः पातु मां नारसिंहः ॥ ५॥


नासाग्रं पीनगण्डं परबलमथनं बद्धकेयूरहारं,

रौद्रं दंष्ट्राकरालं अमितगुणगणं कोटिसूर्याग्निनेत्रं ।

गाम्भीर्यं पिङ्गलाक्षं भ्रुकुटितविमुखं षोडशाधार्धबाहुं, वन्दे भीमाट्टहासं त्रिभुवनविजयः पातु मां नारसिंहः ॥ ६॥


के के नृसिंहाष्टके नरवरसदृशं देवभीत्वं गृहीत्वा,

देवन्द्यो विप्रदण्डं प्रतिवचन पयायाम्यनप्रत्यनैषीः ।


शापं चापं च खड्गं प्रहसितवदनं चक्रचक्रीचकेन,

ओमित्ये दैत्यनादं प्रकचविविदुषा पातु मां नारसिंहः ॥ ७॥


झं झं झं झं झकारं झषझषझषितं जानुदेशं झकारं, हुं हुं हुं हुं हकारं हरित कहहसा यं दिशे वं वकारं ।

वं वं वं वं वकारं वदनदलिततं वामपक्षं सुपक्षं,

लं लं लं लं लकारं लघुवणविजयः पातु मां नारसिंहः ॥ ८॥


भूतप्रेतपिशाचयक्षगणशः देशान्तरोच्चाटना,

चोरव्याधिमहज्ज्वरं भयहरं शत्रुक्षयं निश्चयं ।

सन्ध्याकाले जपतमष्टकमिदं सद्भक्तिपूर्वादिभिः,

प्रह्लादेव वरो वरस्तु जयिता सत्पूजितां भूतये ॥ ९॥


॥ इति श्रीविजयीन्द्रयतिकृतं श्रीषोडशबाहुनृसिंहाष्टकं सम्पूर्णं ॥