सर्व प्रथम इस साधना में सर्वप्रथम संकल्प करना है | जैसे हर एक अनुष्ठान में करते है | संकल्प करने के लिए सर्व प्रथम अपने दाए हाथ में जल लें |
श्री सूक्त का नित्य संकल्प करें, संकल्प।कैसे करना है
"ॐ मम स कुटुम्बस्य स परिवारस्य नित्य कल्याण प्राप्तिअर्थं अलक्ष्मी विनाशपूर्वकं दशविध लक्ष्मी प्राप्ति अर्थं श्री महालक्ष्मी प्रीत्यर्थं यथा शक्ति श्रीसूक्तस्य पाठे विनियोगः |" ( जपे-होमे ) हाथ में पकड़ा हुआ जल छोड़े |
अर्थ : मेरे पुरे कुटुंब सहित समग्र परिवार का कल्याण हो तथा अलक्ष्मी का विनाश हो और देश प्रकार की लक्ष्मी की प्राप्ति के लिये महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिये यथा शक्ति पाठ करने का में संकल्प कर रहा हूँ या कर रही हूँ यह संकल्प अपनी अवश्यक्तानुसार बदल भी सकते हैं।
इसके पश्चात श्रीसूक्त का विनियोग पढ़े |
विनियोगः ॐ श्री हिरण्यवर्णां इति पञ्चदशर्चस्य श्री सूक्तस्य आद्यमन्त्रस्य लक्ष्मी ऋषिः चतुर्दशमंत्राणां आनंदकर्दमचिक्लीतेईंदिरासुता ऋषयः जात वेदोग्नि दुर्गा श्री महालक्ष्मी देवता आद्यानां तिसृणां अनुष्टुप छन्दः चतुर्थ मंत्रस्य बृहति छन्दः व्यंजनानि बीजानि स्पर्श शक्तयः बिन्दवः कीलकं मम अलक्ष्मी परिहार पूर्वकं दशविधलक्ष्मी प्राप्त्यर्थं यथा शक्ति श्रीसूक्ते पाठे ( जपे-होमे ) विनियोगः |
इसके पश्चात् श्रीसूक्त पाठ के पूर्व न्यास करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यवर्णायै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः | बोलकर अंगूठे को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्यै तर्जनीभ्यां नमः | बोलकर तर्जनी को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवते महालक्ष्म्यै सुवर्णरजतस्त्रजायै मध्यमाभ्यां नमः | बोलकर मध्यमा ऊँगली को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै चन्द्रायै अनामिकाभ्यां नमः | बोलकर अनामिका ऊँगली को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्मयै कनिष्ठिकाभ्यां नमः | बोलकर कनिष्ठिका ऊँगली को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै सुवर्ण रजतस्त्रजायै शिखायै नमः | बोलकर शिखा को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै चन्द्रायै कवचाय हुम् | बोलकर दोनों हाथो से परस्पर कवच बनाये |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै हिरण्मयै नेत्रत्रयाय वौषट | बोलकर दोनों आँखों को स्पर्श करे |
ॐ नमो भगवत्यै महालक्ष्म्यै अस्त्राय फट | बोलकर सिर के ऊपर से तीन बार हाथ घुमाकर तीन बार ताली बजाये |
ॐ भूर्भुवः स्वरोमिति दिग्बन्धः | बोलकर दिशाओ को बाँध ले |
महालक्ष्मी ध्यान
ॐ अरुणकमल संस्था तद्रजः पुञ्जवर्णां, करकमल धृतेष्ठाभीति युग्माम्बुजा च |
मणिमुकुटविचित्रालङ्कृता कल्पजातैः भवतु भुवनमाता सन्ततं श्रीं श्रिये नः ||
श्री सूक्तम् पाठ
हरिः ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥1॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् ।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥4॥
प्रभासां यशसा लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥
आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥
उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद गृहात् ॥8॥
गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरींग् सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥9॥
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥
कर्दमेन प्रजाभूता सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस गृहे ।
नि च देवी मातरं श्रियं वासय कुले ॥12॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥13॥
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥14॥
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पूरुषानहम् ॥15॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥16॥
# विनियोग, न्यास व ध्यान पाठ के आवश्यक अंग हैं, इन्हें करने से पाठ शीघ्र सिद्ध होते हैं।
# विनियोग, न्यास व ध्यान एक ही बार करना है, सिर्फ पाठ की आवृत्ति बार बार करनी है।।
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